Saturday, November 1, 2014

"आहत ह्रदय"

       "आहत ह्रदय"

दीन-दुनिया से मूर्छित रहा मैं
निष्कपट सा ऊर्जित रहा मैं
व्यर्थ होगा जानकर भी
ख़ुद को समर्पित कर गया मैं

फ़िक्र सबकी और बेफ़िक्र रहा मैं
क्रन्दन में जब अनसुना रहा मैं
बेबात है यह जानकर भी
रोते-रोते हँस गया मैं

अदृष्ट अप्रिय अवांछित सहा मैं
पर सदैव आशान्वित रहा मैं
भंगुर है सब जानकर भी
स्वप्न सुनहरे बुन गया मैं

निर्णयों में अनिर्णित रहा मैं
अपनों में ही दिग्भ्रमित जिया मैं
अग्राह्य हूँ यह जानकर भी
ख़ुद को प्रकट कर गया मैं

साथ सभी के चलता रहा मैं
अपनी राह अकेला बढ़ा मैं
मृग मरीचिका है जानकर भी
प्यास अपनी पीता गया मैं

एक पथिक सा बनता गया मैं
अकथित सा सुनता गया मैं
धार है यह जानकर भी
आहत ह्रदय से बढ़ता गया मैं
आहत ह्रदय से बढ़ता गया मैं..


"आशीष मौर्य"

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