Sunday, November 23, 2014

हमने भी डूब के उस पार जाने की कोशिश की थी
डूबने को मुझपर एक और दिल का बोझ तो हो..


वक़्त ने कर दिया बुत हर ज़र्रा मेरी दुनिया का
किसको दूँ मैं अज़ान कोई निगाह-ए-बान तो हो..


कहना तो चाहता हूँ मैं भी हर लफ़्ज़ तन्हाई के
मैं भी तोड़ू ख़ामोशी तू मेरा मोहताज़ तो हो..


आज से है वादा-ए-ज़िस्त मेरा तेरी मसरूफीयत से
पुकारेंगे ना हम भी दिन चाहे क़यामत का ही हो..


चाँद के तो होते हैं सभी चकोर इस दुनिया में
मुझे महसूस तू करना जब आसमान वीराना हो..


ख़्वाहिशों को तेरी दी है साँसों की सरगम अपनी
ग़म ना करना मेरे सीने में जो कोई साज़ ना हो..


"आशी" इस बाज़ार में तुम बहुत चीख़ लिए
दिल की तब ही कहना जब कोई कारोबार ना हो..

"आशीष मौर्य "

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